बिना फिटनेस प्रमाण पत्र के ही जिले की सड़कों पर सरपट दौड़ रहीं गाड़ियां

फिटनेस जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं,बिना जांच के ही मिल रहा फिटनेस प्रमाण पत्र

सिमडेगा:-जिले की सड़कों पर हर रोज सड़क दुर्घटना हो रही है जिससे दर्जनों लोग जख्मी और अपंग हो रहे हैं और कइयों को अपने जान से भी हाँथ गंवाना पड़ गया है।वर्ष के शुरुआत से अबतक दर्जनो सड़क दुर्घटनाओं में चालक की मृत्यु हो गई है। लेकिन वाहनों के फिटनेस जांच की फिक्र किसी को भी नहीं है। सड़कों पर खटारा वाहनें फरार्टे से दौड़ रही है। वाहनों के फिटनेस का फाइलों तक ही सिमटा है। फिटनेस जांच की जिले में भले ही कोई व्यवस्था नहीं है। जांच के लिए मशीन भी नहीं लेकिन कागज पर वाहनों का फिटनेस तैयार का दे दिया जाता है। भले की गाड़ी की बॉडी जर्जर हो, टायर डैमेज हो, स्टेयरिंग प्रणाली दोषपूर्ण हो, स्पेंशन दुरुस्त नहीं हो, हार्न खराब हो, लाइट में गड़बड़ी हो,रिफ्लेकटिंग टेप ना हो,स्पीड गवर्नर ना हो, इंडीकेटर का अता पता नहीं हो, ब्रेक प्रणाली भी गड़बड़ हो, वाहन का दरवाजा बंद नहीं होता हो कोई बात सबकुछ चलता है। आपको व्यवहारिकता निभा देनी है कागज पर पूरा फिटनेस मिल जाएगा। इसके लिए आपको दलाल भी मिल जाएंगे। धरातल पर यातायात व्यवस्था को व्यवस्थित रखने की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं हो पा रही है। सुरक्षित यातायात के लिए बनी योजनाएं व जिला स्तरीय सड़क सुरक्षा समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय संचिकाओं में दबकर रह जाते हैं। यह सही है कि प्रशासन के पास संसाधनों की कमी है। लेकिन, यह भी उतना ही बड़ा सच है कि इच्छाशक्ति का अभाव हर तरफ है । सड़क पर कहीं भी यातायात व्यवस्था नाम की चीज नहीं है। ट्रैफिक पुलिस के नाम पर जिले में कोई अलग से व्यवस्था नहीं है। सड़क पर जल्दीबाजी, नियम की अनदेखी, ओवरटेकिंग की होड़ तथा शराब पीकर तेज गति में वाहन चलाना तो लोगों के जान पर कहर ढा ही रहा है लेकिन जर्जर वाहनें भी इसमें पीछे नहीं है। अनदेखी करना तो वाहन चालकों पर भारी पड़ ही रही है साथ ही जर्जर वाहन भी सड़क हादसे की वजह बन रहे हैं। 

मोटर व्हीकल एक्ट के अनुसार तय किए गए मानकों पर वाहनों की जांच करने के बाद ही उसे सड़क पर चलने की अनुमति मिलनी चाहिए। लेकिन इस नियम का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। ऐसे में बिना फिटनेस प्रमाणपत्र हासिल किए वाहन सड़कों पर धड़ल्ले से चल रहे हैं। सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण इलाके में है। इन इलाकों में जर्जर वाहनों से न सिर्फ यातायात की समस्या उत्पन्न होती है, बल्कि दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं।बिना फिटनेस प्रमाणपत्र के चल रहे वाहन, नहीं हो रही कार्रवाई।सैकड़ों वाहन हैं जिनका फिटनेस प्रमाणपत्र नहीं है। इसके बावजूद इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है। 80 फीसद वाहन बिना फिटनेस प्रमाणपत्र के चल रहे हैं।

कागज पर फिट सड़क पर अनफिट

जिले की सड़कों पर चलने वाले कई खटारा वाहन का भी आपको फिटनेस प्रमाण पत्र मिल जाएगा। जबकि फिटनेस के 20 मानकों पर वाहन का खड़ा उतरना जरूरी है। भले की गाड़ी की बॉडी जर्जर हो, टायर डैमेज हो, स्टेयरिंग प्रणाली दोषपूर्ण हो, स्पेंशन दुरूस्त नहीं हो, रिफ्लेकटिंग टेप ना हो,स्पीड गवर्नर ना हो,हॉर्न खराब हो,लाइट में गड़बड़ी हो, इंडीकेटर का अता पता नहीं हो, ब्रेक प्रणाली भी गड़बड़ हो, वाहन का दरवाजा बंद नहीं होता लेकिन इसका फिटनेस प्रमाण पत्र टंच होगा। आज जिले में वर्षों पुराने वाहन धड़ल्ले से चल रहे हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे वाहनों की भरमार अर्से पुराना टैक्ट्रर, ठेलामार कार व जीप, कंमाडर व अन्य वाहन मिल जाएंगे। जो फिटनेस के लिए जरूरी एक भी शर्त को पूरा नहीं कर रहा है लेकिन सड़क पर तेज गति से चलती है।

बिना जांच के मिल रहा फिटनेस प्रमाण पत्र

जिले में वाहनों के फिटनेस जांच के लिए कोई माकूल व्यवस्था नहीं है। इसके लिए जरूरी मशीन भी नहीं है। संचिकाओं व कागज पर ही सब कुछ चलता है। कागज पर तो वाहन फिट रहता लेकिन सड़क पर उसकी जर्जरता देखने लायक रहती है। फिटनेस प्रमाण पत्र पूरी तरह सुविधा शुल्क पर आधारित है। इसके लिए दलाल भी धड़ल्ले से मिल जाते हैं जो आपका कागजात लेकर सारा काम कराकर आपको दे देगा। नए निजी वाहन के पंजीकरण से 15 वर्षो तक फिटनेस प्रमाणपत्र की वैधता होती है। उसके बाद वाहन की फिटनेस की जांच कराकर प्रमाणपत्र हासिल करना होता है, जो कि पांच वर्षो के लिए मान्य होता है। वहीं, व्यावसायिक वाहन के लिए इसकी वैधता पंजीकरण के दो वर्षो तक होती है। इसके बाद प्रत्येक वर्ष वाहन की जांच कराकर प्रमाणपत्र हासिल करना होता है। बिना इसके वाहन का पंजीकरण वैध नहीं माना जाता है। निजी वाहनों का फिटनेस प्रमाणपत्र जिला परिवहन कार्यालय से प्राप्त किया जा सकता है।इसके लिए मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर वाहन की जांच कर प्रमाणपत्र प्रदान करता है।

किसी वाहन में नहीं होते रिफ्लेक्टिव टेप फिर भी बन रहे प्रमाण पत्र

मानकों के अनुसार वाहन के फिटनेस प्रमाण पत्र लेने के लिए वाहन में रिफ्लेक्टिव टेप का होना आवश्यक है।परंतु सड़क पर चलते कई वाहन आपको ऐसे दिखेंगे जिन पर रिफ्लेक्टिव टेप नहीं लगा होता है। वहीं मानकों के अनुसार फिटनेश प्रमाण पत्र लेने के लिए वाहनों में स्पीड गवर्नर का होना भी आवश्यक किया गया है परंतु बिना स्पीड गवर्नर के भी कई वाहनों का फिटनेश प्रमाण पत्र जारी किया जा रहा है।

बिना दलाल के नहीं होते काम

जिला परिवहन कार्यालय पूरी तरह दलालों चंगुल में है। वाहन चालकों द्वारा फिटनेस प्रमाणपत्र हासिल नहीं करने के पीछे सरकारी व्यवस्था भी जिम्मेदार है। वाहन मालिकों का कहना है कि जिला परिवहन कार्यालय में बिना दलाल का काम करवाना दुश्वार है। लाइसेंस बनाने से लेकर वाहनों के फिटनेस प्रमाणपत्र पाने में इनका सहारा लेना मजबूरी है।

मानकों पर नहीं होती है जांच

केंद्रीय मोटर व्हीकल एक्ट-1989 के तहत वाहन के टायर, स्टेयरिंग, हॉर्न, ब्रेक, लाइट, इंडिकेटर, स्पीडोमीटर, वाइपर, बॉडी, प्रदूषण, सेफ्टी ग्लास व सेफ्टी बेल्ट सहित लगभग 20 मानकों की जांच कर उसे सड़क पर उतरने की इजाजत दी जाती है। वाहन चालकों के ड्राइविंग लाइसेंस व दस्तावेज की जांच के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है।

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