कालो खलखो
बोलबा:- सिमडेगा जिले के बोलबा प्रखण्ड अन्तर्गत प्रसिद्ध पर्यटक दनगद्दी प्रकृति छटाओं से परिपूर्ण सैलानियों को नववर्ष के मौके पर लुभा रही है ।पर्यटक स्थल दनगद्दी शंख नदी पर स्थित प्रकृति की गोद में बसा हुआ है जो प्रकृति सौंदर्य को विखेर रही है यहाँ की कल-कल करती नदियाँ , जो चट्टानों के बीच से होकर बह रही है विशाल बालू की रेत, ऊँचे-ऊँचे टील्हे, सफेद एवं काली चट्टानें, चारो ओर ऊँचे पहाड़ एवं हरे-भरे पेड़-पौधे, पंछियों की कलरव एवं मधुर तान लोगों के मन को मोह रही है । दूर-दूर से लोग घूमने एवं पिकनिक मनाने के लिए सालों भर लोग आते हैं वही नया साल के मौके पर हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ रहती है ।

दनगद्दी का इतिहास :
सिमडेगा जिला कालांतर में बीरु – केशलपूर राज्य था इसके शासक बीरुगढ के राजा हुआ करते थे। मुगल बादशाह जहांगीर ने साम्राज विस्तार के क्रम में छोटानागपुर के महाराजा दुर्जनशाल को पराजित कर खलियार के किले में कैद कर लिया था। उन्हें कैद से छुड़ाने के लिए बीरु के राजा असली एवं नकली हीरा लेकर बादशाह जहांगीर के दरबार में पहुंचे। जहांगीर ने हीरो की पहचान के लिए लड़ने वाले भेड़ों के माथे पर हीरों को बंधवा दिए। असली हीरे सुरिक्षत रह गई और नकली हीरे टूट गए। जहांगीर की आत्मकथा तुजुक ए जहांगीर में इसका वर्णन किया गया है। हीरों को महाराजा दुर्जनसाल ने हांथ में लेकर पहले ही परख लिया था। जहांगीर ने उसकी परख की सत्यता जांच रहे थे। दुर्जनशाल ने हीरों की परख से जहांगीर खुश होकर उन्हें कैद को छोड़ दिए। साथ में उत्तर भारत के अन्य राजा भी छुट गए। उन्हीं राजाओं ने छोटा नागपुर साम्राज के लिए नवरत्न गड़ जो अभी सिसई के पास है उसे बनवाया था।

जिसके खंडहर अभी भी विद्यमान है। उसके बाद छोटा नागपुर एवं बीरुगढ के राजाओं से हीरों की मांग लगातार जारी रही। बादशाह जहांगीर ने छोटानागपुर महाराजा पर दबाव बनाया एवं महाराजा ने बीरु राजा पर दबाव बनाया। अंततः हीरों के लिए दानगद्दी जो उस समय हीरादह के रूप में जाना जाता था, वहाँ पर एक डैम बनवाया गया। डैम को देखने के लिए महाराजा भी आ रहे थे। शंख नदी का पानी रोक कर झोरा समाज के लोग दह के भीतर नीचे हीरा चुन रहे थे। किसी कारणवश उस वक्त बांध टूट गया और हीरा पहचानने और निकालने वाले सभी लोग वहां डुब गए। इतने लोगों की कुर्बानी के कारण यह स्थल दानगद्दी कहलाया। दह के उपर बांध बनाने का चिन्ह अभी भी मौजुद है। दानगद्दी में पहला मेला एवं पूजा बोलबा के सरदार बासु सेनापति भंजदेव के परपोता स्व. धर्मदेव सेनापति भंजदेव ने 1964 ई. में मंकर संक्रांति के मौके पर किया था। समय के साथ इस जगह की प्रसिद्धि फैलने लगी। सन् 1972 ई. में महाशिवरात्रि पूजा में यहाँ शिवलिंग का स्थापना किया गया। उस समय पूर्ण रूप से योगदान एवं सहयोग देने वाले रामजीत सेनापति भंजदेव, धर्मदेव सेनापति भंजदेव, लाल वीरमित्र सिंह देव, जलेश्वर पेठाई, धनदायक दास , महेश्वर सेनापति भंजदेव, जोहन खेस्स देवनन्दन प्रधान, गजाधर सिंह, नारायण सेनापति भंजदेव आदि व्यक्तियों का नाम आता है ।

दनगद्दी पर्यटक स्थल के रूप विकसित हो रही है । सरकार की ओर लाखो रुपए की लागत से सुन्दरीकरण किया गया है ।दनगद्दी समिति का गठन किया गया है जो पर्यटक स्थल की साफ -सफाई एवं देख रेख कर रही है वहीं गोताखोरों की भी ब्यवस्था किया गया है इसके साथ समिति द्वारा वाहनों एवं लोगों के आवाजाही पर सहयोग एवं ब्यवस्थित कर रही है । पिकनिक के दौरान डिस्पोजल थाली, प्लास्टिक गिलास एवं शराब का बोतल आदि वहाँ छोड़ना समिति द्वारा वर्जित किया गया है । साथ ही शाम के 5 बजे तक दनगद्दी स्थल से छोड़ देना बेहतर है।