आश्विन पूर्णिमा में छः कुली पूजा अर्चना के साथ केरसई के अम्बेराटोली में मनाया गया कुपार लिंगो का जन्मोंउत्सव

गोंडवाना धार्मिक संस्कृतिक रक्षा मंच और GSU झारखंड के संयुक्त तत्वावधान में केरसई प्रखंड के शुभ ग्राम आंबेरा टोली में कुपार लिंगो जन्मोत्सव कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से गोंड समाज के मातृ शक्ति पितृ शक्ति और युवा पीढ़ी के युवा साथियों ने बड़ चढ़ कर हिस्सा लिया।सर्व प्रथम गोंड समाज के छः कुल के सगा बंधुओं के साथ छः कुली पूजा गोंडी विधि विधान और धूप धुवान पूजा अर्चना हल्दी चन्दन लगा कर एवम एक एक कर चित्र पर पुष्प अर्पित किया गया। हीराधर मांझी जी ने कुपर लिंगो के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहां गया पारी कुपर लिंगो को गोंड आदिवासी परंपरा में प्रथम प्राकृतिक का वैज्ञानिक माना जाता था। उन्हें संगीत का जनक के रूप में भी जाना जाता है। कोया पुनेम तत्वज्ञान में,(1) (विभिन्न गोत्र धानक समाज)(2) गोटूल (संस्कृति शिक्षा केंद्र),( 3)पेनकड़ा(देव स्थल ठाना),(4) पुनेम ,(धर्म) तथा (5) मुठवा (धर्म गुरु, गुरु मुखिया)हमने पूर्व में “कोया पुनेम (गोंडी धर्म) (संस्कृति, शिक्षा केन्द्र), यह पांच वंदनीय एवं पूज्यनीय धर्म तत्व हैं. इनमे से किसी एक की कमी से कोया पुनेम अपूर्ण ही रह जाता है. आदि महामानव पहांदी मुठवा पारी कुपार लिंगों ने अपने साक्षीकृत निर्मल सिद्ध बौद्धिक ज्ञान से सम्पूर्ण कोया वंशीय मानव समाज को सगायुक्त सामाजिक जीवन का मार्ग बताया. सगायुक्त सामाजिक जीवन के लिए उचित एवं अनुकूल व्यक्तित्व, नव वंश में निर्माण करने के उद्देश्य से पारी कुपार लिंगों ने “गोटूल” नामक शिक्षण संस्था की स्थापना की. गोटूल, यह संयुक्त गोंडी शब्द गो+टूल इन दो शब्दों के मेल से बना हुआ है. “गो” याने ‘गोंगो’ अर्थात दुःख एवं क्लेश निवारक शक्ति, जिसे विद्या कहा जाता है. “टूल” याने ठीया, स्थान,स्थल. इस तरह गोटूल का मतलब गोंगोठाना (विद्या स्थल, ज्ञान स्थल) होता है।प्राचीन काल में गोंडवाना के प्रत्येक ग्राम में जहां गोंड वहा गोटूल संस्था विद्दमान थी. फिर चाहे वह मूलनिवासियों में से किसी भी समुदाय के क्यों ना हो. गोटूल संस्था को विभिन्न प्रदेशों में विभीन संज्ञाओं से जाना जाता है. जैसे- भूंईंया गोंड इसे ‘धंगर बस्सा’ (धंगर याने विद्या, बस्सा याने स्थल), मुड़िया गोंड इसे ‘गिती ओढ़ा’ (गिती याने ज्ञान, ओढ़ा याने घर), और उराँव गोंड इसे ‘धुमकुढ़िया ’ (धुम याने विद्या, कुढ़िया याने पढ़ाई का स्थान, घर) आदि. इस तरह गोटूल नामक शिक्षा संस्था की स्थापना कर उसमे छोटे बाल-बच्चों, उम्र के 4 से लेकर 18वर्ष तक के लिए उचित शिक्षा प्रदान करने का कार्य पारी कुपार लिंगों ने शुरू किया.

इस पर से पारी कुपार लिंगो के कोया पुनेम तत्वज्ञान में बौद्धिक ज्ञान विकास को कितना अग्रता में दिया गया है इस बात की जानकारी हमें प्राप्त होती है.इस कार्यक्रम को सफल बनाने में गोंडवाना धार्मिक सांस्कृतिक रक्षा मंच के उपाध्यक्ष तिरुमलानिरोज मांझी, महासचिव तिरुमल राजनाथ मांझी, सचिव तिरुमल तरुण मांझी, कोषाध्यक्ष रायताड़ चिंतामणि देवी, संरक्षक हिराधर मांझी, संगीता देवी, जय मंगल प्रधान, कामेश्वर पहान, गजेंद्र मांझी, फूलचंद मांझी ,रूपचंद मांझी, देवकरण मांझी, भूमि दाता रंथी मांझी, निरंजन मांझी, सरवन मांझी, श्याम मांझी, रामशरण मांझी,Gsu के संरक्षक नरेश कुमार बेसरा, रवि प्रधान, दर्शन प्रधान, सावित्री मांझी, बसंती मांझी, अगस्ती मांझी, पार्वती मांझी, रायमति मांझी, राजमणि मांझी इन लोगों ने गोपाल लिंगो जन्म उत्सव कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम योगदान दिए।

Related posts

Leave a Comment