धूमधाम से मना कुरडेग भिखारियेट काथलिक महिला संघ का रजत जयंती समरोह

बिशप विंसेंट बरवा की अगुवाई में संपन्न हुआ मिस्सा अनुष्ठान
सिमडेगा
कुरडेग भिखारियेट काथलिक महिला संघ का 25 वर्ष पूरा होने पर रजत जयंती समारोह का आयोजन किया गया। मौके पर बिशप विंसेंट बरवा की अगुवाई में मिस्सा पूजा का आयोजन किया गया। मौके पर कोयल दल की बहनों ने नृत्य कर बिशप सहित अन्य अतिथियों को वेदी तक लाया। बिशप विसेंट बरवा ने संदेश देते हुए कहा कि महिला संघ के लिए रजत जयंती समारोह महत्वपूर्ण समारोह है। माताओं को ईश्वर का सौभाग्य प्राप्त है। वहीं एक मां होना गौरव की बात है, जो ईश्वर के सभी संतानों पर अपना निस्वार्थ प्रेम व स्नेह न्योछावर करती है। कलिसिया भी हमारी मां है। जो सब कुछ सहन करते हुए भी हमारे ऊपर स्नेह बरसाती है। कार्यक्रम में विधायक भूषण बाड़ा, जिप सदस्य जोसिमा खाखा, डीन फादर सुनील कुमार तिर्की, फादर नेस्तोर कुल्लू, फादर बिपिन किशोर सोरेंग, फादर फाबियन डुंगडुंग, फादर एडमोन बाड़ा, विधायक प्रतिनिधि शीतल एक्का,प्रखंड अध्यक्ष तुलसी खलखो, पूर्व प्रखंड अध्यक्ष देवनिस खलखो,जिप सदस्य केरसई प्रेमा बड़ा,कुरडेग भिखारिएट कुरडेग भिखारिएट काथलिक महिला सभानेत्री लिली अनिता एक्का,अनिता रानी टोप्पो,रजनी कुल्लू,सुचिता बिलुंग, हजारों की संख्या में महिलाएं उपस्थित थी।विधायक भूषण बाड़ा ने कहा कि प्रभु चाहते हैं कि हम ईश्वर के प्रेम और पड़ोसी प्रेम को अपने जीवन का केंद्र बिंदु बनाएं। हर मानव एक-दूसरे का सम्मान करें। भाई अपने भाई का आदर करे। इससे ईश्वर का आशीष और कृपा ना केवल कलीसिया पर बल्कि पूरी दुनिया में भी बनी रहेगी। उन्होंने कहा निश्चय ही कुरडेग की कलीसिया और महिला संघ ईश्वर के प्रेम को परिवार और समाज मे बांटकर ईश्वर के बेटे-बेटी होने का अहसास कराते हैं। कहा कि सिमडेगा की महिलाएं अनुशासित और सेवा भावना से परिपूर्ण हैं।

जीवन में प्रभु यीशु को स्थान दें। वे हमारे हर दुख को दूर कर देंगे। हमारी फिक्र करेंगे। जिप सदस्य जोसिमा खाखा ने कहा कि कलीसिया के लिए रजत जयंती प्रभु के अनुग्रह का वर्ष है। पाप, क्षमा और मेल-मिलाप का वर्ष है। अर्थात प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर की कृपा पाने और आनंद मनाने के लिए आमंत्रण देता है। कहा कि आज हम धर्म प्रांतीय महिला संघ की रजत जयंती मना रहे हैं। ईसा मसीह बतलाते हैं कि वह संहिता को समझाने नहीं, बल्कि उसे पूरा करने के लिए आएं हैं। इसलिए धर्म समाज से जुड़े लोगों को कलीसिया के धार्मिक आचरण में रहकर एक-दूसरे के सुख-दुख में बराबर का भागीदारी होना चाहिए।