माता के जयकारे के साथ निकाला गया भव्य कलश यात्रा
कोलेबिरा:- प्रखंड अंतर्गत काल्हाटोली स्थित मां बाघचंडी मंदिर में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया गया है। जिसमें रविवार को भव्य कलश यात्रा निकाला गया। इस कलश यात्रा में लगभग 5100 से अधिक महिलाएं माताएं बहने नंगे पांव पदयात्रा कर लगभग 5 से 6 किलोमीटर दुर्गम एवं पथरीले रास्ते से होते हुए देवनदी से कलश में जल भरकर काल्हाटोली स्थित मां बाघचंडी के मंदिर परिसर पहुंचे। कलश यात्रा के पश्चात माता के मंदिर में वहां के पुजारी के द्वारा वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया गया। कलश यात्रा में कोलेबिरा, बानो, जलडेगा, लचरागढ़, सिमडेगा, बसिया, कोनबीर, पालकोट, गुमला आदि जगहों से भी महिलाओं ने भाग लिया।मां बाघचंडी की वार्षिक उत्सव प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी 12 फरवरी से 14 फरवरी तक होना है जिसमें 12 फरवरी को कलश यात्रा, 13 फरवरी को अखंड हरी कीर्तन, महायज्ञ एवं पूजन किया जाना है जिसके बाद 14 फरवरी को पूर्णाहुति एवं हवन के साथ वार्षिक उत्सव का समापन किया जाएगा। जैसा कि ज्ञात है मां बाघचंडी धाम शक्तिपीठ की आस्था दूर दूर तक फैली हुई है। लोग मां बाघचंडी के मंदिर दूर-दूर से पूजा करने के लिए आते हैं, इस माता के मंदिर में श्रद्धालु मन्नत मांगते हैं जिससे उनका मन्नत पूरा भी होता है। जिससे कि माता बाघचंडी के मंदिर में लोगों का आस्था के साथ-साथ माता के प्रति विश्वास बना हुआ है। लोगों का कहना है कि मां बाघचंडी के दरबार पर जो भी फरियादी सच्चे मन से मन्नत मांगता है उनका वह मन्नत जरूर पूरा हो है।

मां बाघचंडी के मंदिर में सालों भर श्रद्धालुओं का भीड़ लगा रहता है। लोग दूर-दूर से झारखंड के अलावे छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल, बिहार के अलावा अन्य राज्यों से भी पूजा-अर्चना करने आते हैं। इस मंदिर में विशेषकर मंगलवार और शनिवार को अधिक भीड़ होती है। माता के दरबार में प्रत्येक वर्ष तीन दिवसीय उत्सव का आयोजन किया जाता है इस उत्सव में मेला भी लगाया जाता है। माता बाघचंडी का मंदिर सिमडेगा जिला के कोलेबिरा मनोहरपुर मुख्य पथ NH 320 G जो कोलेबिरा मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित है। मां बाघचंडी मंदिर के मुख्य पुजारी पंचम सिंह और छत्रपति सिंह ने बताया कि आज से सैकड़ों वर्ष पहले की बात है जब कल्हाटोली में कोलेबिरा मनोहरपुर मुख्य पथ पर मां जगदंबा रूपी चंडी का एक शीला देखा गया। उस शिला पर बाघ के पंजे का निशान बना है। ऐसी मान्यता थी कि जिस किसी को मां का दर्शन होता था बाघ उसके सामने स्वयं प्रकट हो जाता था और उन्हें दर्शन देता था। तब धीरे-धीरे लोगों में इसके प्रति आस्था बढ़ने लगी साथ ही पूरे क्षेत्र में इसकी चर्चा होने लगी। जिसके बाद वहां के मुख्य पुजारी पंचम सिंह ने कहा कि तब से हमारे पूर्वज सैकड़ों वर्ष से मां बाघचंडी की पूजा एवं सेवा करते आ रहे हैं। मां बाघचंडी का नाम विभिन्न क्षेत्रों में विख्यात होने लगा और धीरे-धीरे समय एवं लोगों के आस्था के अनुसार यहां पर परिवर्तन भी होने लगा। जब लोगों में इनकी आस्था बढ़ने लगी तो लगन सिंह के मन में विचार आया कि यहाँ एक मंदिर बनाया जाए।

लेकिन मंदिर के लिए जगह नहीं था, जिसके लिए सभी के सहयोग से मंदिर बनाकर 12 फरवरी 2012 ई. को मंदिर निर्माण कर मां बाघचंडी को स्थापित किया गया। जिसके बाद से ही प्रत्येक वर्ष इसे मंदिर स्थापना वर्ष के रूप में भी मनाया जाता है। इस मंदिर में एक पत्थर का शीला है जिसमें बाघ के पंजे का निशान है। इसीलिए इसे मां बाघचंडी के नाम से जाना जाता है। माता बाघचंडी का मंदिर आस्था का केंद्र बन गया है। जो भी श्रद्धालु मां को श्रद्धा भक्ति के साथ कुछ भी मांगते हैं मां उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण करती हैं। इस मंदिर में बलि प्रथा भी है लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर माता के समक्ष बकरे का बलि भी चढ़ाते हैं। यहां के आसपास के लोग प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
