नव वर्ष पर सैलानियों की आगमन को तैयार, बोलबा स्थित पर्यटक स्थल दनगद्दी

बोलबा :-सिमडेगा जिले के बोलबा प्रखण्ड में शंख नदी पर अवस्थित प्रसिद्ध पर्यटक स्थल दनगद्दी सैलानियों को नए साल के मौके पर पिकनिक के लिए आकर्षित कर रही है दनगद्दी में प्रकृति सौन्दर्य का मनोरम दृश्य चारो ओर भरा पड़ा है ।यहाँ की नीली -सफेद चिकनी चट्टानें, ऊँचे -ऊँचे टील्हे, गीत गाते झरने, विशाल बालू की रेत, चारो ओर हरे – भरे ऊंचे पहाड़, पंछियों के कलरव ने मन को मोह लेता है। इस नववर्ष के मौके पर आप अपने परिवार के साथ इस क्षेत्र में आकर सैर सपाटा के साथ समय बिता सकते हैं यहां की खूबसूरती लोगों को मन में होती है चट्टानों को सीना चीर भर्ती जलधारा लोगों को आकर्षित करती है। सिमडेगा से महज 45 किलोमीटर की दूरी में स्थित इस क्षेत्र में नववर्ष के मौके पर भारी संख्या में सैलानियों की भीड़ उमड़ती है और लोग यहां पर आकर समय व्यतीत करते हैं खासकर यहां की मनोरम प्राकृतिक छटा देखने के लिए लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं और गीत संगीत की धुन में थीरकते हैं।

दनगद्दी का इतिहास

बोलबा प्रखण्ड अंतर्गत दनगद्दी का एक प्राचीन इतिहास रहा है दनगद्दी पूर्व में केशलपुर राज्य के अंतर्गत आता था इसका शासक बीरूगढ़ के राजा के अधीन था । मुगल बादशाह जहांगीर साम्राज्य विस्तार के क्रम में छोटानागपुर के महाराजा दुर्जनसाल को पराजित कर ख़ालियर के किले में कैद कर दिया उसे छुड़ाने के लिए बीरू के राजा असली एवं नकली हीरे लेकर बादशाह जहांगीर के पास पहुंचा बादशाह जहांगीर ने असली एवं नकली हीरे की पहचान के लिए लड़ने वाले दो भेड़ों के माथे में बांध दिया ।नकली हीरे टूट गए जबकि असली हीरे सुरक्षित रह गई जहांगीर हीरे से खुश होकर दुर्जनसाल को कैद से मुक्त कर दिया साथ ही उतर भारत के अन्य राजाओं ने भी कैद से छूट गए ।उन्ही राजाओं ने छोटानागपुर साम्राज्य के लिए नवरत्न गढ़ सिसई गुमला जिले में बनवाया गया था। जिसका खण्डहर अब भी मौजूद है ।इसका वर्णन तुजुक एक जहांगीर के किताब में उल्लेख मिलता है। इस घटना के बाद छोटानागपुर एवं बीरू गढ़ के राजाओं से लगातार हीरे की माँग किया जा रहा था बादशाह जहांगीर ने रातू महाराजा एवं महाराजा ने बीरू गढ़ के राजा से दबाव बनाकर हीरे की मांग करने लगे।बताया जाता है कि शंख नदी के दनगद्दी इलाके में बहुतायत मात्रा में हीरा पाया जाता था। मछली फंसाने के क्रम में कुमनी-लोडरा में मछली के साथ हीरा फंसता था ।अंततह हीरे की खोज के लिए दनगद्दी में एक डैम बनाया गया शंख नदी का पानी रोककर झोरा जाति के लोग पानी निकालकर हीरे खोज रहे थे इसकी सूचना रातू महाराजा को मिल गई महाराजा ने हीरे की तलाश में दनगद्दी प्रस्थान कर गए।जिस गांव में महाराजा रुकते वह गांव उन्हीं का हो जाता था तब बीरू राजा ने सोचा कि यह तो अनर्थ हो जायेग। तब हीरे निकालने के लिए बनाए गए बांध को तोड़ दिया गया हीरे निकालने वाले बहुत से लोग दनगद्दी के हीरा दह में समा गए ।तब से इस स्थान को दानगद्दी हीरा दह के नाम से जाना जाता है

मकर संक्रांति में लगता है विशेष रूप से मेला

बताया जाता है पर्यटन स्थल दनगद्दी में मकर संक्रांति के मौके पर विशेष रूप से मेला का आयोजन किया जाता है इसकी सन 1964 में मकर संक्रांति मेला का आयोजन हुआ जिसकी अगुवाई बोलबा के सरदार बासु सेनापति के परपोता धर्मदेव सेनापति ने शुरू किया था वही 1972 में शिवलिंग की स्थापना कर महाशिवरात्रि पूजा एवं मेला लगाया गया जिसमें रामजीत सेनापति, धर्म देव् सेनापति, समसेरा राजा लालमिरमित्रो सिंह देव्, जलेश्वर पेठई, धनदयाल दास, महेश्वर सेनापति, जोहन खेस, देवनन्दन प्रधान, गजाधर सिंह, नारायण सेनापति आदि के सहयोग से कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।यहाँ का शिव मन्दिर आस्था के केंद्र है यहाँ पर आने वाले सैलानियों ने मन्दिर में घुसकर भोलेनाथ के आगे माथा टेक कर आशीर्वाद लेते हैं । वर्तमान में पुराने शिव मन्दिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है शिव धाम सेवा समिति मन्दिर एवं पर्यटक स्थल का देख रेख कर रही है यहाँ पर साफ-सफाई, सैलानियों के वाहनों की पार्किंग के साथ समुचित व्यवस्था करती है यहाँ प्लास्टिक एवं डिस्पोजल का उपयोग पर रोक लगाया गया है समिति के अध्यक्ष दशरथ सिंह, सचिव चंद्रदेव सेनापति, उपाध्यक्ष हीरा प्रधान सोमरु सिंह, सुरजन बड़ाईक, कोषाध्यक्ष सेवक प्रधान, राजू सिंह, विश्राम प्रधान, रामशुभग प्रधान, केशरी सिंह, बिनोद बड़ाईक, सकिन्द्र प्रधान आदि का योगदान है ।





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